नूरपुर उपमंडल के गांव गहीं लगोड़ वार्ड नंबर 07 (घियाली) स्थित प्राचीन बावड़ी जिसे ‘आम की बावड़ी’ के नाम से जाना जाता है आज भी ग्रामीणों की आस्था और सेवा-भावना का प्रतीक बनी हुई है।
जहां आज के समय में अधिकांश कुएं, तालाब और बावड़ियों की देखरेख और सफाई पर उतना ध्यान नहीं दिया जाता, वहीं इस गांव की यह बावड़ी एक उदाहरण बनकर सामने आई है। यहां के ग्रामीण पिछले लगभग 45 वर्षों से न केवल इस प्राकृतिक जल स्त्रोत की नियमित सफाई और संरक्षण कर रहे हैं बल्कि हर साल जून माह के पहले रविवार को एक विशाल भंडारे का आयोजन भी करते आ रहे हैं।
इस प्राचीन बावड़ी को बचाए रखने की इस सामूहिक भावना के पीछे केवल धार्मिक आस्था ही नहीं, बल्कि जल संरक्षण के प्रति लोगों की जागरूकता और जिम्मेदारी का भाव भी शामिल है। गांव के वरिष्ठ नागरिक हरनाम वर्मा का कहना है कि प्राकृतिक जल स्त्रोत हमारे जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। जल ही जीवन है और इसके बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इसलिए इनका संरक्षण हम सभी की जिम्मेदारी है।
उन्होंने आगे कहा कि जल एक सीमित संसाधन है और यदि हम अभी भी सचेत नहीं हुए तो भविष्य में इसके भयावह परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। पानी की कमी का सीधा असर मानव स्वास्थ्य, कृषि और पर्यावरण पर पड़ता है।
हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी भंडारे के आयोजन में गांव के कई युवाओं और वरिष्ठों ने तन, मन और धन से योगदान दिया। इस अवसर पर हरनाम वर्मा, जीवन वर्मा, नेकराज, सूरज सिपहिया, अजय कुमार, मुकेश चौधरी, योगेश चौधरी, रितेश, अमित शर्मा, पीयूष, साहिब सिंह, दीपक कुमार, रमेश कौशल, संजीव जमवाल, चमन किशोर, शिव राणा और प्रीतमचंद सहित कई अन्य ग्रामीणों ने अपनी सेवाएं दीं।
इन सभी ने एक स्वर में यह संदेश दिया कि प्राकृतिक जल स्रोतों का संरक्षण आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है, और इसके लिए सभी को आगे आना चाहिए। साथ ही नई पीढ़ी को भी इसके प्रति जागरूक करना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।
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