आशा वर्कर्स को काम के बदले सरकार से केबल सराहना ही नहीं चाहिए बल्कि काम के बदले उचित मानदेय भी चाहिए। सराहना या तारीफ से पेट नहीं भरता और न ही किसी का घर चलता है। आशा वर्कर्स को मिलने वाले 2750 रुपये ऊंट के मुँह में जीरे के समान हैं। आशा वर्कर्स का हक सरकार उन्हें समय पर दे अन्यंथा आने बाले समय मे वर्तमान सरकार को इसका खामियाज़ा भुगतना पड़ सकता है। यह कहना है हिमाचल प्रदेश आशा कार्यकर्ता संघ की अध्यक्ष सुमना देवी का।
सुमना देवी का कहना है कि कोविड 19 में वैक्सीनेशन में लगभग फ्री में ड्यूटी दे रही आशा वर्कर्स और वहीँ लोगों को वैक्सीनेशन के लिए प्रोत्साहित भी कर रहीं हैं लेकिन सरकार आशा कार्यकर्ता के हित के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठा रही। आशा कार्यताओं का भी अपना घर परिवार है और 66 रुपये दिहाड़ी दे कर सरकार आशा वर्कर्स का शोषण कर रही है। उन्होंने कहा कि मजदूर की दिहाड़ी भी 400 रुपये है तो सरकार बताए कि इस कोविड के दौर में भरपूर खतरों के बीच काम करने के बाबजूद और इस महंगाई के दौर में किस हिसाब से आशा वर्कर्स को 66 रुपये दिए जा रहे हैं? क्या 66 रूपये में किसी का घर चल सकता है?
उन्होंने सरकार से मांग की है कि सरकार आशा वर्कर्स को सरकारी कर्मचारियों की सूची में लाए या फिर रेगुलर स्केल की नीति बनाए। अगर यह सब भी नही कर सकती तो फिर स्थाई पॉलिसी बनाए, ओर राज्य कर्मचारी घोषित करते हुए मासिक न्यूनतम वेतन 18000 रुपये सुनिश्चित करे।
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