विनम्र प्रार्थना: पूरा पढ़े और औरों को भी बताएं हो सकता है प्रेरणा ले कर कोई हीरा चमक कर और मसीहा बन कर सामने आ जाये
भूषण शर्मा : नूरपुर
भूषण शर्मा : नूरपुर
दोस्तो, बात 21 जुलाई 2007 की है, रैहन के छत्र जिला कांगड़ा विधानसभा फतेहपुर, के एक युवक नीरज शर्मा जो किसी फार्मा कम्पनी में ऊंचे ओहदे पर तैनात थे, की शादी पठानकोट की रहने वाली एक पढ़ी लिखी लड़की अलका शर्मा से बड़ी धूमधाम से हुई। अलका भी ससुराल में आकर एक बहु नहीं बल्कि बेटी की तरह खुशी खुशी रहने लगी, कुछ सालों बाद इस दम्पति के यंहा एक पुत्र आयान ने जन्म लिया सारा घर खुशियों से भर गया।
पुत्र प्राप्ति के बाद अलका पूरी तरह से बेटे की देखभाल व लालन पोषण में बड़ी तन्मयता से जुट गई। पूरा घर खुशियों से भरा पूरा था, लेकिन बेटे को संसार मे आये कुछ ही समय हुआ था कि एक दिन अचानक अलका को पता चलता है कि उसका बेटा सामान्य नही है, बल्कि दिव्यांग है और खुद कुछ भी करने में असमर्थ है।
बेटे आयान के इलाज के लिये नीरज ने जमीन आसमान एक कर दिया परन्तु बो ठीक न हो सका। अब अलका दिन रात बेटे की देखभाल करने लगी व उसे लेकर चिंतित रहने लगी। एक रात जब अलका बेटे को गोद मे लेकर सुलाने की कोशिश कर रही थी तो उसे ख्याल आया कि क्यों ना मैं अपने बेटे और खुद को जहर देकर यह सब खत्म ही कर दूं। दोस्तो अलका ने अभी यह निर्णय लिया ही था कि अचानक आयान रोने लगा।
और फिर पता नही अलका के मन मे क्या आया और उसने उसी दिन से एक प्रण ले लिया कि हम तो साधन सम्पन लोग हैं और आयान जैसे बच्चे की ठीक से देखभाल कर सकते हैं, लेकिन उनका क्या जिनके पास अपने ऐसे बच्चों को पालने के लिये कोई व्यवस्था नहीं है।
तो दोस्तो अलका ने उसी क्षण यह तय कर लिया कि प्रदेश में जितने भी इस तरह के बच्चे हैं बो उनकी देखभाल करेगी व उनका समय समय पर होने वाला इलाज भी करवाएगी। उसने यह बात अपने पति नीरज को बताई, नीरज, अलका की बात से एक दम सहमत हो गया। लेकिन इस काम मे बहुत पैसे के साथ ही बिल्डिंग की भी जरूरत थी। इतना पैसा नीरज कंहा से जुटा पाता, लेकिन अलका की जिद्द के आगे उसे अब यह करना तो था ही।
दोनों ने अपने माता पिता की सलाह से अपने घर की ऊपर वाली मंजिल को ऐसे बच्चों के आश्रम में तब्दील कर दिया। जिसमे नीरज ने अपनी सारी जमा पूंजी लगा दी और अलका ने ''एंजल दिव्यांग आश्रम" नाम से शुरुआत कर दी।
दोस्तो अलका का हौसला व ऐसे बच्चों के प्रति प्यार व दुलार देखते ही बनता है। देखते देखते अलका के पास लगभग 45 बच्चों का एक ऐसा समूह हो गया जो किसी न किसी तरह से दिव्यांग हैं। अलका अपने बेटे आयान के साथ साथ बाकी सभी बच्चों का लालन पोषण ठीक वैसे ही कर रही है जैसे बो अपने आयान का करती आई है। आज अलका ने कई तह के प्रोफेशनल लोगों को आश्रम में सहयोग के लिये रखा है। जिनमे कोई डॉक्टर तो कोई अन्य काम देखने बाले लोग शामिल हैं।
अलका के इस आश्रम की साफ सफाई व व्यवस्था देखते ही बनती है। दोस्तो मैं आज तक हिमाचल के कई आश्रमो में गया हूँ लेकिन जो व्यवस्था अलका ने अपने बनाये आश्रम में कई है बो कंही और देखने को नहीं मिली। अलका आज खुश है हालांकि इतने बड़े स्तर पर आश्रम को चलाने के लिये काफी फण्ड बगैहरा की जरूरत होती है।
नीरज अपनी सारी कमाई व थोड़ी बहुत मिलने वाली डोनेशन इसी आश्रम पर खर्च करते हैं। दोस्तो जब मैं वँहा पहुँचा तो आश्रम का माहौल देख कर दंग रह गया और सोच पड़ गया कि क्या कोई महिला मात्र अपने पति के सहयोग से इतना बढ़िया आश्रम और इतनी खूबसूरत व्यवस्था के साथ चला सकती है?
दोस्तो प्रत्यक्ष को प्रमाण की जरूरत नही होती और प्रत्यक्ष मेरे सामने था। आज अलका सच मे एक नही बल्कि कई दिव्यांग बच्चों की माँ है और बो ममता उसके चेहरे से साफ साफ झलकती भी है।
दोस्तो मेरा आपसे विनम्र निवेदन है कि आप में से कोई भी अगर रैहन की तरफ जाता है तो कम से कम एक बार अलका के इस स्वप्न लोक यानी एंजल आश्रम जरूर जाएं और देखें कि कैसे एक माँ की ममता कई जिंदगियों में उजाला भर रही है। मां सच मे मां होती है और बो पूरे ब्रह्मांड को बदलने की क्षमता रखती है यह आज अलका शर्मा ने दिखा दिया।
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